Saturday, March 3, 2018

बात की बात

बात की बात में बात ही चली गई
यूँही मुलाकातों में रात ही चली गई
जो बात जुबाँ पे थी आके रुकी कबसे
लहरों उठी तो वो बात ही चली गई
सवेरा जब हुआ हुई तलाश रात की
रात में जो बात थी वो बात ही चली गई ।।।

वैभव सागर

Sunday, February 11, 2018

ऐसे मैं मन बहलाता हूँ !

सोचा करता बैठ अकेले,
गत जीवन के सुख-दुख झेले,
दंशनकारी सुधियों से मैं उर के छाले सहलाता हूँ!
ऐसे मैं मन बहलाता हूँ!

नहीं खोजने जाता मरहम,
होकर अपने प्रति अति निर्मम,
उर के घावों को आँसू के खारे जल से नहलाता हूँ!
ऐसे मैं मन बहलाता हूँ!

आह निकल मुख से जाती है,
मानव की ही तो छाती है,
लाज नहीं मुझको देवों में यदि मैं दुर्बल कहलाता हूँ!
ऐसे मैं मन बहलाता हूँ!

हरिवंशराय बच्चन

मैं कल रात नहीं रोया था

मैं कल रात नहीं रोया था

दुख सब जीवन के विस्मृत कर,
तेरे वक्षस्थल पर सिर धर,
तेरी गोदी में चिड़िया के बच्चे-सा छिपकर सोया था!
मैं कल रात नहीं रोया था!

प्यार-भरे उपवन में घूमा,
फल खाए, फूलों को चूमा,
कल दुर्दिन का भार न अपने पंखो पर मैंने ढोया था!
मैं कल रात नहीं रोया था!

आँसू के दाने बरसाकर
किन आँखो ने तेरे उर पर
ऐसे सपनों के मधुवन का मधुमय बीज, बता, बोया था?
मैं कल रात नहीं रोया था!

हरिवंशराय बच्चन