Saturday, August 19, 2017

शबनमी रोशनी की कुछ बूंदें

श्वेत, सर्द आनन्दमय 

चाँद की मोहब्बत भरी रात 

या कहूँ दर्द भरी रात 

इस चमकीली रात में 

बूँद बूँद झरती चाँदनी 

जहां चाँद से जुदा होती 

सुदूर धरती पर कहीं जाकर 

दर -ब -दर ठिकाना ढ़ूढ़ती 

कभी घास पर जा बैठती 

कभी फूलो की पंखुड़ियों पर सजती 

दूर धरा से चाँद को निहारती 

होकर रागमय आनन्द उठाती 

न उसे मृत्यु का भय 

न ही अस्तित्व मिटने का अफसोस 

न ही अनभिज्ञ सूर्य के सत्य से 

बस हैं चन्द्र के प्रेम में बाँबरी 

करके बलिदान अपने जीवन का 

चन्द्र के लिए सूर्य से जीवनदान है मांगती 

अपने अनन्त प्रेम को जीवित रख सके 

ताकि कल रात फिर मिल सके 

रागिनी बनकर, रोशनी बनकर 

और फिर मिट सके शबनमी मोती बनकर ।

      -आस्था गंगवार ©