Sunday, January 15, 2017

बदनाम

​तुम चाहो तो…

अतीत वर्तमान भविष्य भुला कर

लम्हा भर दे सकते हो मुझे सहजता से साथ

और फिर तुम्हारे बग़ैर

 मैं इन लम्हो का बोझ उठाये

 अपनी अस्मिता पर लेकर प्रश्नचिन्ह

 दुहाई देती फिरूँगी निर्मलता का दर-बदर

 तुम मेरे हमराज़ लिखना सुनहरी स्याही से तब

 मेरा नाम डायरी के पन्नो पर

 और वो सारे अनछुये अफ़साने

 जो लम्हे भर तुम्हारे पास बैठ जाने से

 सवालिया निग़ाह बन खड़ें है मुझ पर

 और लिखना तुम 

 एक नर्म बिस्तर पर

 तुम्हारी उँगलियों को छू लेने का वो मेरा गुनाह

 और आखिरी पन्नो पर लिखना

 एक नस्ल वो

 आबादी का वो हिस्सा 

 जो पुरुष को छूकर हो जाती है बदनाम

 फिर तुम इन जहरीली बातों को

 मल देनां समाज के मुँह पर

हाँ तब इनमे से एक कोई 

पूछेगा आकर

तुम जबाब मत देना

प्रश्न वही दोहराना

क्या एक लड़की 

लड़के को छूकर हो जाती है बदनाम

जब होगा आगाज़ सोच को बदलने की

घिसी-पिटी मानसिकता तब होगी शर्मसार।।

रिंकी कुमारी