Saturday, February 18, 2017

वो अनकहा सा प्यार -1

पहला दिन पहली नज़र
मासूम हँसी और
दिल का मेरे इकरार
वो अनकहा सा प्यार
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बातें हुइ चंद यादें हुइ
कुछ खोया खोया लगता था
मुझमे ही तो थी मैं पर
मन सोया सोया रहता था
मुझे झ्झोडा जिसने वो था
एक शर्मीला मेरा यार
वो अनकहा सा प्यार
.
था फर्ज हिलोरे मारता
वतन की मोहब्बत कौन जानता
आन्धियां चली मेरे मन में
वो जा रहा था दुर कहीं
बस आँसू ही थे बिछडन में
थी बातें जुबान पर कयी
पर लब खुल ना पा रहे
बस इतना तो पूछूँ मैं
“सच मुझे छोडकर जा रहे?”
दिलों में था जो इंकार
वो अनकहा सा प्यार
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पलट के भी ना देखना
आँसुओं की कीमत पायी है
है कोरा सच ये बिल्कुल
इसमे थोडी रुसवाई है
अगर पलटी मैं या पलटा वो
तो शायद सब थम जाता
जी लेते मिलकर हम
तो क्युँ ना पलटू इक बार
ये था अनकहा मेरा प्यार
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वैभव सागर
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