Wednesday, February 1, 2017

वो मेरे दिल से वकिफ़. . .

वो मेरे दिल से वाकिफ 

मैं उसकी रूह से वाकिफ 

होती कुछ पल की तकरार 

फिर उमङता बेइंतहा प्यार 

इश्क है बंदिशो से आजाद 

शब्दो से नहीं होता उसे आघात 

मोहब्बत की नहीं कोई परिभाषा 

एहसास ही है उसकी भाषा 

जो दो दिल है समझते 

एक दूसरे को है लिखते पढते 

ये जिस्म है बस एक जरिया 

रूह ही है असली दरिया 

जहाँ गिरकर नहीं कोई निकलता 

सुकून बस डूबकर ही है मिलता 

जमाने की नहीं जिसे परवाह 

चाहत ही है जहाँ दरगाह 

मैं ऐसे इश्क से वाकिफ 

ऐसा इश्क मुझसे वाकिफ….. 

आस्था गंगवार